अधिकांश व्यक्तियों में, दंत क्षरण का प्राथमिक कारण दांतों को प्रभावित करनेवाली विकृतियां या बीमारियां नहीं होतीं.
3.
ऐसी शर्कराओं द्वारा दंत क्षरण के विकास पर डाले जाने वाले प्रभाव को क्षरणकारिता (cariogenicity) कहते हैं.
4.
बड़े दंत क्षरण अक्सर नंगी आंखों से देखे जा सकते हैं, लेकिन छोटे घावों को पहचान पाना कठिन हो सकता है.
5.
चूंकि, इन अम्लीय अवधियों के दौरान दांतों पर क्षरण का खतरा होता है, अतः दंत क्षरण का विकास अम्लीय संपर्क की आवृत्ति पर अत्यधिक निर्भर होता है.
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चूंकि जीवाणु बुरे मौखिक स्वास्थ्य में योगदान करने वाले प्रमुख कारक हैं, अतः दंत क्षरण के लिये किसी टीके की खोज करने के लिये वर्तमान में अनुसंधान जारी है.
7.
दंत क्षरण, जिसे दंत-अस्थिक्षय या छिद्र भी कहा जाता है, एक बीमारी है जिसमें जीवाण्विक प्रक्रियाएं दांत की सख्त संरचना (दन्तबल्क, दन्त-ऊतक और दंतमूल) को क्षतिग्रस्त कर देती हैं.
8.
इसके परिणामस्वरूप, दांत की किसी भी संवेदनशीलता के बिना दंत क्षरण एक लंबे समय तक प्रगति करता रह सकता है, जिससे दांत की संरचना की बहुत अधिक हानि हो सकती है.
9.
1890 के दशक में, डब्ल्यू. डी. मिलर (W.D. Miller) ने अध्ययनों की एक श्रृंखला आयोजित की, जिसके परिणामस्वरूप उन्होंने दंत क्षरण की एक व्याख्या दी, जो वर्तमान सिद्धांतों पर प्रभाव डालने वाली सिद्ध हुई.
10.
दंत क्षरण दांत की किसी भी ऐसी सतह पर हो सकता है, जो कि मुंह के छिद्र में उजागर हो रही हो, लेकिन यह अस्थि के भीतर बचा ली गई संरचना पर नहीं हो सकता.